मेरा भारत महान है इसमें क्या कोई शक है....?
शायद इस बात पर शक है तभी तो साल में दो बार ये नारा दुहराते हैं
..... अपने आप के ज़िंदा होने का अहसास दिलाते हैं।
हम देश भक्त हैं तभी तो ए० आर० रहमान के गीत "माँ तुझे सलाम " गुनागुनातें हैं।
हम लोग भाई अपने को बड़ा राष्ट्र प्रेमी साबित करने पे तुले हैं
ये अलग बात है कि हम माँ के दूध से एकाध बार ही धोए गए अथवा धुले हैं
सारी सफेदी नेताओं को मिली है।
उनकी वाणी में सफ़ेद झूठ
और
खादी की पोशाक गोया नए रिन की बट्टी से धुली है......!
भारत की महानता के नाम पर आत्म-गीत गायेंगे ..... !
और नौकरशाह बंद गले के काले सूट में मंडराएंगे.....?
सरकारी महकमें शहर के स्टेडियमों में गणतंत्र मनाएंगे
अधिसूचित मंत्री जहाँ तिरंगा फहराएगें
वहाँ निकलेंगी झाँकियाँ विकास की झलक और सुनहरे सपन दिखाए जाएंगे
पहली झांकी होगी नग़र निगम की
जहाँ बैठक में हुए झगडे को दिखाना भूल जाएंगे ।
दूसरी झाँकी उद्योगों का दृश्य दिखाएगी
मेरे शहर के बेरोज़गारों को रुलाएगी ।
तीसरी झांकी में शिक्षा के स्तर को बताएगी
स्कूलों की संख्या , के अनुपात में गुणवत्ता छिपाएगी ।
ग्रामीण विकास के दृश्य दिखाने वाली झांकी में
गाँव तकसाफ सुथरी सड़क
रोज़गार की गारंटी बताएंगे
कितना ऊपर से आया कितना मिला गरीब गाँव को
ये बात छिपाई जाएगी ...!
सरकार के स्वास्थ्य विभाग की सफलता
आकाश में नजर आएगी
ये अलग बात है कितने लोग बीमारी से मरें हैं
कितने बेचारे अज्ञानता के तिमिर से घिरे है...!
चलो कुछ पाजिटिव हों जाएँ......!
ये तो रोज़िन्ना का रोना है
लोकतान्त्रिक देश का अलोकतान्त्रिक कोना है।
रोष है फिर भी सलाम् तो ठोकना है।
भूल के इसे हिल मिल के गणतंत्र की वर्ष गाँठ मनाएं
न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडिया
नव वर्ष की सभी को शुभकामनाएं । यह बात हम पिछले २० साल से कह रहे हैं । हर साल कुछ नया करने की तम्मना। साल एक एक दिन कर बीत जाता है और हम अपनी जिन्दगी का एक साल गवां देते है। २००७ को कई बात के लिए याद किया जाएगा। इसमे वो बाते भी होगी जो हमे राष्ट्रीय खबरिया चैनल नही दे। साल के शुरुआत में हम मनोरंजन और खबरों के लिए अलग अलग चैनल देखते थे। अब चंनेलो पर सिर्फ मनोरंजन दिखता है। टी र पी की महामारी फ़ैल गयी है। अब बिहार के बाढ़ में १००० से भी ज्यादा मौते टी र पी में जगह नही बना पाती । गुजरात में एक परिवार में ६ लोगो की एक साथ मौत का प्रोफाइल छोटा था। और उत्तर प्रदेश के कन्नौज और इटावा जिले के सरकारी स्कूल में दलित महिला के हाथ का बना खाना खाने से बच्चो का इंकार करना खबरिया चैनल के लिए बिकने वाला मसाला नही था। खबरिया चैनल का केमरा राखी के बूब्स देखता रहा और चैनेल के एडिटर उसमे नोके ढूंढते रहे। दर्शक रीजनल चैनल की तरफ आ गए । खबरों के शौकीन दर्शको का रुझान राष्ट्रीय चैनल से हट कर अख़बार पर आ गया। कई सीनियर पत्रकार टी वी कि दुनिया को बाय बाय कर अपनी पत्रकारिता करने वापिस प्रिंट मीडिया में चले गए। । उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश का कंटेंट पार्ट कम हो गया। हिन्दी बोलने वाले सारे हिन्दुस्तानी दिल्ली और मुम्बई में चले गए। साल की विदाई पर दूसरो के घरो मे झाक ताककर दर्शको को बोरे करते रहे। यही हाल रहा तो दर्शक इस साल खबरिया चंनेलो को बाय बाय कर दे तो कोई खासबात नही होगी। नए चैनल बाजार में आये और वो भी ताऊ हट जा गाते रहे। चमचागिरी की बिक्री बढ़ गयी और काम करने वाले साल भर ब्लोग्गिंग कर अपनी भड़ास निकालते रहे। चेंनेलो की संख्या मे इजाफा हुआ और दर्शको की कमी आई। प्रभु चावला जैसे पत्रकारों को उलटी बात करनी पड़ी। शर्म आनी चाहिऐ देश के सबसे सर्व शेष्ठ चैनल वाले को राखी की सीधी बात मे बूब्स दिखाने के लिया क्या क्या नही किया। तभी तो कहता हूँ की ये न्यूज़मीडिया है या फयूज मीडिया।
एक बार फिर नव वर्ष कि सभी को शुभकामनाएं ।
एक बार फिर नव वर्ष कि सभी को शुभकामनाएं ।
मेरी दिल्ली यात्रा
मुझे दिल्ली जाने का मौका कभी कभी मिलता है । वैसे चैनल वाले आजकल स्वर्ग की यात्रा कर कर रहे है और संजीवनी बूटी लाने का मार्ग खोज रहे है । अपना अभी चांस नही लगा है । हम बात दिल्ली यात्रा की कर रहे थे । जब मैं 6 साल का था तब पहली बार गया था । दूर के एक रिश्तेदार संसद भवन मे एकाउंटेंट थे । उनके बेटे की शादी मे जाने का मौका मिला था। लोधी रोड पर सरकारी कॉलोनी मे ५ दिन की मस्ती । सरकारी अम्बसेदर कार पर उन्होने पूरा दिल्ली घुमा दिया था तब। कुतुब मीनार मे ऊपर जाने को भी मिल था। प्यारी दिल्ली , एकदम शांत दिल्ली , हरी भरी दिल्ली , आराम से सड़क पर कर लेते थे हम। दूध मदर डेरी की बोतल मे मिलता था लेकिन तब सिंथेटिक होने का टेंशन नही था। बात 1977 की थी, अब बात 2007 यानी की 30 साल बाद की दिल्ली की यात्रा। इस बार हम अपनी कार से थे। रिश्तेदार का पता भूल गए थे इसलिए बदली दिल्ली मे हम उस जगह को ही खोज नही पाए। सोचा था की कुछ खरीदेंगे मगर कार पार्किंग की जगह मिलने मे ही रात के दस बज गए। कुछ लोगो के यहाँ गए। ज्यादातर घरो मे तालो के दर्शन हो पाए। मिया बीबी दोनो काम पर गए होंगे। पूरा दिन सड़क पर ही बीत गया। कोई क्रॉसिंग नही मिली। पेटी बांधे सिर्फ आगे की ओर भागते रहो। हर कोई भाग रहा है। याद आ गयी पुरानी कहानी आसमान गिर रहा है भागो। दो दिन मे पूरे ४५०० रुपी खर्च कर चुका था। मगर किसी ने नमस्ते तक नही की। अपने नगर मे ऐसा नही होता। घर से निकलने से वापिस आने तक सौ पचास लोग तो सलाम ठोक ही देते है। रात मे चांदनी चौक से बॉर्डर क्रॉस करने मे ही तीन घंटे लग गए। रेड लाइट जलती बुझती रही और हम कछुए की चाल से से चलते रहे। अचानक बदबू आई तो पता चला की हम दिल्ली के गाजीपुर इलाके मे पहुँच गए है। चारो तरफ बोर्ड लग गए है। पता पूछने का झंझट नही है। शीला जी के फोटो वाले खुशहाल दिल्ली की पट्टी भी दिखी थी। ये चैनल वाले यो ही ब्लू ब्लू चिल्लाते है। हमारे उत्तर प्रदेश मे तो रोज ही जुगाड़ वाले और पहले साइकिल वाले और अब हाथी वाले झंडे लगाए जीपे रोज ही दो सैकडा जगह सड़क रेड रेड कर देते है। लगता है महानगरों मे रहने वाले वाले इन्सान की टी आर पी ज्यादा है। चैनल वाले भूल जाते है शीला जी दिल्ली की नही उत्तर प्रदेश की है। concrete के जंगल के सिवा कुछ भी हमसे ज्यादा नही था। अलबत्ता सब कुछ कम था। प्यार, मेहमान नवाजी, तक्लूफ़, और समय ये सब दिल्ली मे कम है लोगो के पास। चौबीस घंटे मे आठ घंटे तो सड़क नापने मे ही खर्च हो जाता है . आठ घंटे ड्यूटी और बचे आठ घंटे मे सोना फुनियाना और जरूरी काम। khair हमारे मित्र ने रात मे barah बजे hame एक गोली दी और कहा इसे kha lo neend aa jayegi.
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