ये है दिमागी बुखार
प्रोफाइल क्या है.
तुम बाप हम तुम्हारे बाप।
सर एक शादी मे गोली चल गई हर्ष गोली बाजी मे कई लोग घायल हो गए। शादी मे एक मंत्री जी भी थे। ख़बर चली वी आई पी की मौजदगी मे गोली चली कई घायल। साथ मे मंत्री जी का interview चल रहा था मैं पहले ही चला आया था। शादी मेरे ड्राईवर की बेटी की थी। इस शादी का प्रोफाइल बड़ा था। शादी मंत्री जी के ड्राईवर की बेटी की जो थी। क्या हो गया चेंनेल वालो को। भांग पी कर बैठे है क्या। सब एक ही थाली के बैंगन है। राखी के थप्पड़ की गूँज किस चेंनेल पर नही गूंजी हमे बताये जरा।
सब साले प्रोफाइल के भूखे है.
ब्रह्मा को चुनौती
कभी विवाह् हुआ करता था
कभी विवाह् हुआ करता था । घर की बेटियां छत की मुडेर से झाँक कर अपने सपनो का शहजादा खोजने लगती थी और दूर से बाबाजी या दादाजी की नज़र जब परकोटो मे पड़ती थी तब रात मे घर के बुजुर्गो को बिस्तर पर घर की इज्ज़त की चिंता सताने लगती थी। सभी रिश्तेदारों की शादियों मे दादाजी ५ दिन पहले यूं ही नही जाते थे। अपनी पोती के लिए कोई ह्ष्ठ पुष्ठ सुंदर काया और किसी खानदानी दामाद की तलाश मे जूते घिस जाते थे। शादी ५ दिवसयीय होगी या ३ होगी कितने बाराती आयेंगे कितने जीजी होंगे कितने मामा होंगे कितने मौसा होंगे कितने सहबोला होंगे इनकी सूची बनती थी। बारात मे नौटंकी किसकी होगी। आतिशबाजी कहाँ की होगी। सुबह को नास्ते के बाद दोपहर का कच्चा खाना होगा। बड़े रिश्तेदारों को क्या नज़र मे मिलेगा। घर के नौकरों के लिए क्या होगा। ननद की ननद के लिए क्या कपड़े होंगे। सास के समधौरे मे क्या जाएगा। सातो जातियों के कामगारों के लिए क्या उपहार होगा। बेटी के बटुए मे क्या रखा जाएगा। शादी से पहले की सबसे बड़ी दोस्त भाभी ससुराल जाने पर क्या क्या करना है और कैसे करना है सब सिखाने लगती। कैसे शर्मा है। हल्ला कम मचाना। पहले पैर चूना। ज्यादा न नुकुर न करना। कुछ दिन मे अब ठीक हो जाएगा आदि आदि। एक लम्बी फेरहिस्त है दो अलग अलग कोख से पैदा हुए अलग अलग परिवेश मे पले बड़े अल्हड़ को जननी और जनक बनाने के।
मगर अब जमाना बदल गया है। आज बाप को पता भी नही होता है की मेरा लाडला या लाडली उनके घर बसने की सोचने से पहले ही कई बार महिला डॉक्टर की मदद ले चुके होते है। सुप्रीम कोर्ट तक सेक्स इन रिलेशनशिप पर मोहर लगा चुकी है। हो सकता है विवाह कोई इतिहास की घटना बन जाए। बहुत वर्षो बाद स्कूल की किताबो मे इसका पाठ हो की पहले शादी भी होती थी इस समाज मे। अब खुल्ला छूट है। सब रिश्ते ख़त्म। न कोई भाई न कोई बहन न माँ ना बाप न दादा बर्मा पोती न कोई bua न कोई jija सोचो हम क्या janvar नही हो जायेंगे। barhma की इस parthvi पर सबसे sarvshrestra रचना insan janvar होगा। कितना bhayanak होगा vo paridarshya।
युवतियों की खतरनाक टी र पी
भी लड़कियों को लगती है। आंधी आती हैं तो तस्वीर छपती है। नीचे लिखते हैं- खुद को संभालतीं युवतियां। गर्मी में भी युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। कालेज खुलते हैं तो सिर्फ युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। सीबीएसई के नतीजे के अगले दिन वाले अख़बार देखिये। तीन चार युवतियों की उछलते हुए तस्वीर होती ही है। जब भी मौसम बदलता है तो युवतियों की तस्वीरें छप जाती हैं। इन तस्वीरों को भी खास नज़र से छापा जाता है। दुपट्टा उड़ता रहे। बारिश से भींगने के बाद बूंदों से लिपटी रहे। कालेज के पहले दिन वैसे कपड़ों वाली युवतियां होती हैं जिनके कपड़े वैसे होते हैं। लेंसमैन को लगता है कि कोई लड़की टॉप में है। जिन्स में है। कहीं से कुछ दिख रहा है तो छाप दो। बस नीचे लिख दो कि तस्वीर में जो मूरत हैं वो युवती है। वो नीता गीता नहीं है।मैं हर दिन हिंदी अखबारों में युवतियों को देख कर परेशान हो गया हूं। युवकों का भी मन मचलता होगा। युवक भी बारिश में भींगते होंगे। युवक भी कालेज में पहले दिन जाते होंगे। युवक भी सीबीएसई के इम्तहान पास करते होंगे। उनकी तस्वीरें तो छपती ही नहीं। यह मान लेने में हर्ज नहीं कि लड़कियों से सुंदर दुनिया में कुछ नहीं। मगर उस सुंदरता को एक खास नज़र से देखना तो कुंठा ही कहलाती होगी।मुझे आज तक कोई भी लड़की नहीं मिली जो खुद को युवति कहती हो। मिसाल के तौर पर मैं सपना एक युवती हूं। लड़कियों से लड़की लोग जैसे सामूहिक संबोधन तो सुना है मगर युवती लोग या युवतियां नहीं सुना है। पता नहीं अख़बार में कहां से युवतियां आ जाती हैं। आपको कोई अख़बार का संपादक मिले तो पूछियेगा कि कहीं युवतियों से टीआरपी वाला मकसद तो पूरा नहीं होता। जैसे टीवी में सुंदर चेहरे से कारोबार होता है क्या पता अख़बारों को भी युवतियों के गीले बदन से कुछ मिल जाता होगा। वो बताते ही नहीं। सिर्फ टीवी पर कालम लिख देते हैं।
आइये....हिलमिल के मनाएँ गणतंत्र
शायद इस बात पर शक है तभी तो साल में दो बार ये नारा दुहराते हैं
..... अपने आप के ज़िंदा होने का अहसास दिलाते हैं।
हम देश भक्त हैं तभी तो ए० आर० रहमान के गीत "माँ तुझे सलाम " गुनागुनातें हैं।
हम लोग भाई अपने को बड़ा राष्ट्र प्रेमी साबित करने पे तुले हैं
ये अलग बात है कि हम माँ के दूध से एकाध बार ही धोए गए अथवा धुले हैं
सारी सफेदी नेताओं को मिली है।
उनकी वाणी में सफ़ेद झूठ
और
खादी की पोशाक गोया नए रिन की बट्टी से धुली है......!
भारत की महानता के नाम पर आत्म-गीत गायेंगे ..... !
और नौकरशाह बंद गले के काले सूट में मंडराएंगे.....?
सरकारी महकमें शहर के स्टेडियमों में गणतंत्र मनाएंगे
अधिसूचित मंत्री जहाँ तिरंगा फहराएगें
वहाँ निकलेंगी झाँकियाँ विकास की झलक और सुनहरे सपन दिखाए जाएंगे
पहली झांकी होगी नग़र निगम की
जहाँ बैठक में हुए झगडे को दिखाना भूल जाएंगे ।
दूसरी झाँकी उद्योगों का दृश्य दिखाएगी
मेरे शहर के बेरोज़गारों को रुलाएगी ।
तीसरी झांकी में शिक्षा के स्तर को बताएगी
स्कूलों की संख्या , के अनुपात में गुणवत्ता छिपाएगी ।
ग्रामीण विकास के दृश्य दिखाने वाली झांकी में
गाँव तकसाफ सुथरी सड़क
रोज़गार की गारंटी बताएंगे
कितना ऊपर से आया कितना मिला गरीब गाँव को
ये बात छिपाई जाएगी ...!
सरकार के स्वास्थ्य विभाग की सफलता
आकाश में नजर आएगी
ये अलग बात है कितने लोग बीमारी से मरें हैं
कितने बेचारे अज्ञानता के तिमिर से घिरे है...!
चलो कुछ पाजिटिव हों जाएँ......!
ये तो रोज़िन्ना का रोना है
लोकतान्त्रिक देश का अलोकतान्त्रिक कोना है।
रोष है फिर भी सलाम् तो ठोकना है।
भूल के इसे हिल मिल के गणतंत्र की वर्ष गाँठ मनाएं
न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडिया
एक बार फिर नव वर्ष कि सभी को शुभकामनाएं ।