न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडिया

नव वर्ष की सभी को शुभकामनाएं । यह बात हम पिछले २० साल से कह रहे हैं । हर साल कुछ नया करने की तम्मना। साल एक एक दिन कर बीत जाता है और हम अपनी जिन्दगी का एक साल गवां देते है। २००७ को कई बात के लिए याद किया जाएगा। इसमे वो बाते भी होगी जो हमे राष्ट्रीय खबरिया चैनल नही दे। साल के शुरुआत में हम मनोरंजन और खबरों के लिए अलग अलग चैनल देखते थे। अब चंनेलो पर सिर्फ मनोरंजन दिखता है। टी र पी की महामारी फ़ैल गयी है। अब बिहार के बाढ़ में १००० से भी ज्यादा मौते टी र पी में जगह नही बना पाती । गुजरात में एक परिवार में ६ लोगो की एक साथ मौत का प्रोफाइल छोटा था। और उत्तर प्रदेश के कन्नौज और इटावा जिले के सरकारी स्कूल में दलित महिला के हाथ का बना खाना खाने से बच्चो का इंकार करना खबरिया चैनल के लिए बिकने वाला मसाला नही था। खबरिया चैनल का केमरा राखी के बूब्स देखता रहा और चैनेल के एडिटर उसमे नोके ढूंढते रहे। दर्शक रीजनल चैनल की तरफ आ गए । खबरों के शौकीन दर्शको का रुझान राष्ट्रीय चैनल से हट कर अख़बार पर आ गया। कई सीनियर पत्रकार टी वी कि दुनिया को बाय बाय कर अपनी पत्रकारिता करने वापिस प्रिंट मीडिया में चले गए। । उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश का कंटेंट पार्ट कम हो गया। हिन्दी बोलने वाले सारे हिन्दुस्तानी दिल्ली और मुम्बई में चले गए। साल की विदाई पर दूसरो के घरो मे झाक ताककर दर्शको को बोरे करते रहे। यही हाल रहा तो दर्शक इस साल खबरिया चंनेलो को बाय बाय कर दे तो कोई खासबात नही होगी। नए चैनल बाजार में आये और वो भी ताऊ हट जा गाते रहे। चमचागिरी की बिक्री बढ़ गयी और काम करने वाले साल भर ब्लोग्गिंग कर अपनी भड़ास निकालते रहे। चेंनेलो की संख्या मे इजाफा हुआ और दर्शको की कमी आई। प्रभु चावला जैसे पत्रकारों को उलटी बात करनी पड़ी। शर्म आनी चाहिऐ देश के सबसे सर्व शेष्ठ चैनल वाले को राखी की सीधी बात मे बूब्स दिखाने के लिया क्या क्या नही किया। तभी तो कहता हूँ की ये न्यूज़मीडिया है या फयूज मीडिया।
एक बार फिर नव वर्ष कि सभी को शुभकामनाएं ।