पत्रकारों की हड़ताल--- गर हो जाये तो क्या हो?

क्या कभी इलाकाई पत्रकारों ने हड़ताल की है उन्हें काम के बदले मिलने वाले कम पैसे के विरोध में, शायद कभी नहीं| फसबूक, ऑरकुट, भड़ास और अन्य सोसिअल साइट्स और ब्लॉग पर मीडिया मालिकों के खिलाफ लिखने से कुछ नहीं होगा| अब आन्दोलन की जरूरत है| इकट्ठे होकर समूह में हड़ताल कर दो कम से कम पांच दिन के लिए, चाहे टीवी के लिए काम करते हो या फिर अख़बार के लिए| एक साथ काम बंद कर दो| इन मालिको को बता दो कि हम खबर जगत के अन्नदाता है, खबरे ही नहीं बनायेंगे और भेजेंगे तब क्या खाक छापोगे? कितने दिन पुराना बासा या फिर लेख और फीचर छाप लोगे, उन्हें कब तक जनता हजम करेगी| नींद हराम हो जाएगी इन मालिको की और उनके चमचो की जो इलाकाई पत्रकारों से कम दाम पर अधिक काम का ठेका लेकर शोषण कर रहें है| चाहे तहसील का पत्रकार हो या जिले स्तर का हर पत्रकार कम से कम एक मकान बनाने वाले मिस्त्री के बराबर 300 रुपये रोज से कम पर काम करने को भी मना कर दे तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी|
अब देर किस बात की है| गाँव तहसील से लेकर जिले और प्रदेश स्तर के पत्रकार अब इन्टरनेट पर जुड़ चुके है चाहे वो किसी संसथान के क्यूँ न हो? बनाओ योजना और कर दो आन्दोलन| एक साथ एकजुट होकर| दर किस बात का है|  नौकरी तो तुम्हे वैसे भी कभी नहीं मिली थी, जाएगी क्या ख़ाक! हजारों की संख्या में जिले स्तर के पत्रकार 30-30 साल से मानदेय पर काम कर रहें है| जिला संवाददाता तक पेरोल पर नहीं नहीं हैं, आखिर कब तक झूठ के पुलिंदो पर बैठ निकले जाने के डर से खामोश रहोगे| रोज रोज मरने से अच्छा है एक बार में मर जाओ|
न्यूज़ टीवी पर यही हालत है, कम से कम उत्तर भारत के हिंदी न्यूज़ चैनल की| कभी इलाकाई ख़बरों की भरमार होती थी| लोग उसे देखते थे| जब चीनी बाजार में १६.०० प्रति किलो थी एक स्टोरी करने के 1000 से 2500 तक मिलते थे इलाकाई पत्रकारों को| बढ़िया और दमदार ख़बरें निकलती थी तब| बड़े बड़े चेनलों पर ख़बरों का अम्बार रहता था| बाजार गिरने के बहाने से इलाकाई पत्रकारों के पेट पर लात मार स्टोरी के पैसे आधे कर दिए और तजुर्बेदार लोगों ने काम में रूचि लेना बंद कर दिया उसका असर देखा आज टीवी वालों को चुटकले और भीगा बदन दिखाना पड़ रहा है| ये दर्शको की मांग नहीं है असल में इनके पास अच्छी ख़बरों का अभाव है जिसे ये बाजार मांग के नाम पर छुपा रहे है| आज बाजार में चीनी 32 रुपये किलो है, बच्चो की फीस 3 साल में दोगुनी हो चुकी है, मगर बड़े मीडिया मालिको के चमचे बैलेंस शीट में मुनाफे के लिए इलाकाई पत्रकारों के पेट पर लात मार रहे हैं| अरे इन्हें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी|
हाँ एक बात और अगर अख़बार और टीवी के मालिक और उनके चमचे ये सोचते हो कि बाजार में पत्रकार भरा पड़ा तो ये बात जान लीजिये पत्रकारिता के बाजार में भीड़ जरूर है मगर उनमे पत्रकार कितने है ये आप भी जानते है और हम भी| भारतीय बाजार में आज मीडिया कम्पनी जरूर बढ़ी हैं मगर सही मायने में जिसे पत्रकार कहते है उनकी कमी बहुत ज्यादा है वर्ना समाचारों के चेनल में चुटकले और भीगा बदन न दिखाते| अख़बारों में थानों के ऍफ़आईआर और सरकारी विज्ञप्तियां नहीं छापते, बिना आन्दोलन के आन्दोलन के फोटो और ज्ञापन नहीं छापते और सम्पादकीय में लेख लेखको के छपते अमर सिंह जैसे नेताओं के नहीं जिकने परिचय में लिखना पड़ता है समाजसेवी और चिन्तक... 
जय भड़ास|
पंकज दीक्षित
(पूर्व टीवी पत्रकार)
वर्तमान में अपनी कम्पनी जेएनआई मोबाइल न्यूज़ सेवा और मोबाइल पर ग्रामीणों के लिए jnilive.com अख़बार चलाते हैं|