वारिश का मीडियानामा
न्यूज़ रूम में बैठ कर हेडिंग लगा दी, खबर उसने पढ़ी जिससे सम्बंधित थी उसने माथा पीट लिया, दो चार गलियां दी और मीडिया की बेबकूफी पर निराश होकर गाँव में अपने घर की चौपाल से उठकर स्कूल में पढ़ाने चला गया| ऐसा क्या था खबर में जिससे किसान बौखला गया| खबरों के पाठक लगातार घट रहें है हालाँकि आंकड़ो में प्रसार बढ़ रहा है|
आखिर क्या कहता है किसान
फर्रुखाबाद जनपद के ब्लाक कायमगंज के गाँव दुदेपुर सलेमपुर के 58 साल के स्कूल हेडमास्टर भगवती प्रसाद यादव जिला मुख्यालय पर बेसिक शिक्षा विभाग में कुछ स्कूल के काम से आये तो वहां उनसे अमन सामना हो गया| 16 किलोमीटर दूर से साइकिल चलाकर आये मास्टर साहब के झोले में बाजार से खरीदा हुआ अंग्रेजी का हिन्दुस्तान टाइम्स देख पूछ बैठा मास्टर साहब आपके गाँव में अखबार आता है, बोले नहीं जब कभी शहर आता हूँ कोई न कोई अंग्रेजी का अख़बार जरूर ले लेता हूँ. देश दुनिया की खबरों से जान पहचान बनी रहती है| बात आगे बढ़ी तो अंग्रेजी से हिंदी अख़बारों पर आकर अटक गयी| मुझे पत्रकार जान कुछ संकोच से बोल ही दिया आजकल अखबार पढ़ने लायक नहीं बचा ….(शालीनता पूर्वक संसदीय अपशब्द) क्या लिखते और छापते हैं- किसान देर से वारिश होने से फसल बो नहीं सका और अख़बार लिख रहा है वारिश से किसानो के चेहरे खिले? धान की पौध ज़माने के लिए डीजल पम्प चलाकर पानी भरना पड़ा| जब रुपाई का नंबर आया तब भी बादल सूखे बने रहे लिहाजा फिर किसान ने जमा पूंजी लगाकर डीजल का इंतजाम किया और पानी भरा और अब जब धान बड़ा हो गया है उसे पानी की कम जरूरत है वारिश हो रही है चारो तरफ बाढ़ आ रही है| फसल को नुकसान होने का खतरा पैदा हो रहा है| और मीडिया लिख रहा है – फसल अच्छे होने के आसार| देश के मंत्री भी इसी मीडिया नामा में डूब कर आकंडे गढ़ लेते हैं| देश में गन्ना कम बोया गया है शरद पवार कह रहे है चीनी का उत्पादन अच्छा होगा|
मीडिया और सरकार दोनों से निराश है किसान
गहरी समझ के मास्टर भगवती प्रसाद सरकार और मीडिया दोनों से निराश दिख रहे थे| आगे बोले देश में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े क्षेत्र में गन्ना बोया जाता है मगर यहाँ गन्ने से चीनी कम पैदा होती है इसके मुकाबले आंध्र प्रदेश में गन्ने से चीनी अच्छी मात्र में मिलती है लिहाजा सबसे ज्यादा चीनी पैदा करने वाला आंध्र है मगर यहाँ उत्तर प्रदेश को सरकार ने गन्ने का मुखिया बना रखा है| दर्जनों सरकारी चीनी मिलें बंद पड़ी है| गन्ने के कम उत्पादन के चलते हजारों छोटे छोटे क्रेशर (देशी चीनी बनाने के लघु उद्योग) गन्ने के आभाव और उससे मिलने वाली चीनी की उत्पक्द्ता के चलते बंद हो गए हैं और शरद पवार चीनी की पैदावार अच्छी होने के आसार का बयान दे रहें हैं| और मीडिया उसे छाप भी रहा है अरे कभी किसी किसान से तो पूछ लेते की वारिश से किसानो के चेहरे खिले या मुरझाये…
(असल मुलाकात पर आधारित)
अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें-
पत्रकारों की हड़ताल--- गर हो जाये तो क्या हो?
अब देर किस बात की है| गाँव तहसील से लेकर जिले और प्रदेश स्तर के पत्रकार अब इन्टरनेट पर जुड़ चुके है चाहे वो किसी संसथान के क्यूँ न हो? बनाओ योजना और कर दो आन्दोलन| एक साथ एकजुट होकर| दर किस बात का है| नौकरी तो तुम्हे वैसे भी कभी नहीं मिली थी, जाएगी क्या ख़ाक! हजारों की संख्या में जिले स्तर के पत्रकार 30-30 साल से मानदेय पर काम कर रहें है| जिला संवाददाता तक पेरोल पर नहीं नहीं हैं, आखिर कब तक झूठ के पुलिंदो पर बैठ निकले जाने के डर से खामोश रहोगे| रोज रोज मरने से अच्छा है एक बार में मर जाओ|
न्यूज़ टीवी पर यही हालत है, कम से कम उत्तर भारत के हिंदी न्यूज़ चैनल की| कभी इलाकाई ख़बरों की भरमार होती थी| लोग उसे देखते थे| जब चीनी बाजार में १६.०० प्रति किलो थी एक स्टोरी करने के 1000 से 2500 तक मिलते थे इलाकाई पत्रकारों को| बढ़िया और दमदार ख़बरें निकलती थी तब| बड़े बड़े चेनलों पर ख़बरों का अम्बार रहता था| बाजार गिरने के बहाने से इलाकाई पत्रकारों के पेट पर लात मार स्टोरी के पैसे आधे कर दिए और तजुर्बेदार लोगों ने काम में रूचि लेना बंद कर दिया उसका असर देखा आज टीवी वालों को चुटकले और भीगा बदन दिखाना पड़ रहा है| ये दर्शको की मांग नहीं है असल में इनके पास अच्छी ख़बरों का अभाव है जिसे ये बाजार मांग के नाम पर छुपा रहे है| आज बाजार में चीनी 32 रुपये किलो है, बच्चो की फीस 3 साल में दोगुनी हो चुकी है, मगर बड़े मीडिया मालिको के चमचे बैलेंस शीट में मुनाफे के लिए इलाकाई पत्रकारों के पेट पर लात मार रहे हैं| अरे इन्हें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी|
हाँ एक बात और अगर अख़बार और टीवी के मालिक और उनके चमचे ये सोचते हो कि बाजार में पत्रकार भरा पड़ा तो ये बात जान लीजिये पत्रकारिता के बाजार में भीड़ जरूर है मगर उनमे पत्रकार कितने है ये आप भी जानते है और हम भी| भारतीय बाजार में आज मीडिया कम्पनी जरूर बढ़ी हैं मगर सही मायने में जिसे पत्रकार कहते है उनकी कमी बहुत ज्यादा है वर्ना समाचारों के चेनल में चुटकले और भीगा बदन न दिखाते| अख़बारों में थानों के ऍफ़आईआर और सरकारी विज्ञप्तियां नहीं छापते, बिना आन्दोलन के आन्दोलन के फोटो और ज्ञापन नहीं छापते और सम्पादकीय में लेख लेखको के छपते अमर सिंह जैसे नेताओं के नहीं जिकने परिचय में लिखना पड़ता है समाजसेवी और चिन्तक...
जय भड़ास|
पंकज दीक्षित
(पूर्व टीवी पत्रकार)
वर्तमान में अपनी कम्पनी जेएनआई मोबाइल न्यूज़ सेवा और मोबाइल पर ग्रामीणों के लिए jnilive.com अख़बार चलाते हैं|
ये है दिमागी बुखार
प्रोफाइल क्या है.
तुम बाप हम तुम्हारे बाप।
सर एक शादी मे गोली चल गई हर्ष गोली बाजी मे कई लोग घायल हो गए। शादी मे एक मंत्री जी भी थे। ख़बर चली वी आई पी की मौजदगी मे गोली चली कई घायल। साथ मे मंत्री जी का interview चल रहा था मैं पहले ही चला आया था। शादी मेरे ड्राईवर की बेटी की थी। इस शादी का प्रोफाइल बड़ा था। शादी मंत्री जी के ड्राईवर की बेटी की जो थी। क्या हो गया चेंनेल वालो को। भांग पी कर बैठे है क्या। सब एक ही थाली के बैंगन है। राखी के थप्पड़ की गूँज किस चेंनेल पर नही गूंजी हमे बताये जरा।
सब साले प्रोफाइल के भूखे है.
ब्रह्मा को चुनौती
कभी विवाह् हुआ करता था
कभी विवाह् हुआ करता था । घर की बेटियां छत की मुडेर से झाँक कर अपने सपनो का शहजादा खोजने लगती थी और दूर से बाबाजी या दादाजी की नज़र जब परकोटो मे पड़ती थी तब रात मे घर के बुजुर्गो को बिस्तर पर घर की इज्ज़त की चिंता सताने लगती थी। सभी रिश्तेदारों की शादियों मे दादाजी ५ दिन पहले यूं ही नही जाते थे। अपनी पोती के लिए कोई ह्ष्ठ पुष्ठ सुंदर काया और किसी खानदानी दामाद की तलाश मे जूते घिस जाते थे। शादी ५ दिवसयीय होगी या ३ होगी कितने बाराती आयेंगे कितने जीजी होंगे कितने मामा होंगे कितने मौसा होंगे कितने सहबोला होंगे इनकी सूची बनती थी। बारात मे नौटंकी किसकी होगी। आतिशबाजी कहाँ की होगी। सुबह को नास्ते के बाद दोपहर का कच्चा खाना होगा। बड़े रिश्तेदारों को क्या नज़र मे मिलेगा। घर के नौकरों के लिए क्या होगा। ननद की ननद के लिए क्या कपड़े होंगे। सास के समधौरे मे क्या जाएगा। सातो जातियों के कामगारों के लिए क्या उपहार होगा। बेटी के बटुए मे क्या रखा जाएगा। शादी से पहले की सबसे बड़ी दोस्त भाभी ससुराल जाने पर क्या क्या करना है और कैसे करना है सब सिखाने लगती। कैसे शर्मा है। हल्ला कम मचाना। पहले पैर चूना। ज्यादा न नुकुर न करना। कुछ दिन मे अब ठीक हो जाएगा आदि आदि। एक लम्बी फेरहिस्त है दो अलग अलग कोख से पैदा हुए अलग अलग परिवेश मे पले बड़े अल्हड़ को जननी और जनक बनाने के।
मगर अब जमाना बदल गया है। आज बाप को पता भी नही होता है की मेरा लाडला या लाडली उनके घर बसने की सोचने से पहले ही कई बार महिला डॉक्टर की मदद ले चुके होते है। सुप्रीम कोर्ट तक सेक्स इन रिलेशनशिप पर मोहर लगा चुकी है। हो सकता है विवाह कोई इतिहास की घटना बन जाए। बहुत वर्षो बाद स्कूल की किताबो मे इसका पाठ हो की पहले शादी भी होती थी इस समाज मे। अब खुल्ला छूट है। सब रिश्ते ख़त्म। न कोई भाई न कोई बहन न माँ ना बाप न दादा बर्मा पोती न कोई bua न कोई jija सोचो हम क्या janvar नही हो जायेंगे। barhma की इस parthvi पर सबसे sarvshrestra रचना insan janvar होगा। कितना bhayanak होगा vo paridarshya।
युवतियों की खतरनाक टी र पी
भी लड़कियों को लगती है। आंधी आती हैं तो तस्वीर छपती है। नीचे लिखते हैं- खुद को संभालतीं युवतियां। गर्मी में भी युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। कालेज खुलते हैं तो सिर्फ युवतियों की तस्वीरें छपती हैं। सीबीएसई के नतीजे के अगले दिन वाले अख़बार देखिये। तीन चार युवतियों की उछलते हुए तस्वीर होती ही है। जब भी मौसम बदलता है तो युवतियों की तस्वीरें छप जाती हैं। इन तस्वीरों को भी खास नज़र से छापा जाता है। दुपट्टा उड़ता रहे। बारिश से भींगने के बाद बूंदों से लिपटी रहे। कालेज के पहले दिन वैसे कपड़ों वाली युवतियां होती हैं जिनके कपड़े वैसे होते हैं। लेंसमैन को लगता है कि कोई लड़की टॉप में है। जिन्स में है। कहीं से कुछ दिख रहा है तो छाप दो। बस नीचे लिख दो कि तस्वीर में जो मूरत हैं वो युवती है। वो नीता गीता नहीं है।मैं हर दिन हिंदी अखबारों में युवतियों को देख कर परेशान हो गया हूं। युवकों का भी मन मचलता होगा। युवक भी बारिश में भींगते होंगे। युवक भी कालेज में पहले दिन जाते होंगे। युवक भी सीबीएसई के इम्तहान पास करते होंगे। उनकी तस्वीरें तो छपती ही नहीं। यह मान लेने में हर्ज नहीं कि लड़कियों से सुंदर दुनिया में कुछ नहीं। मगर उस सुंदरता को एक खास नज़र से देखना तो कुंठा ही कहलाती होगी।मुझे आज तक कोई भी लड़की नहीं मिली जो खुद को युवति कहती हो। मिसाल के तौर पर मैं सपना एक युवती हूं। लड़कियों से लड़की लोग जैसे सामूहिक संबोधन तो सुना है मगर युवती लोग या युवतियां नहीं सुना है। पता नहीं अख़बार में कहां से युवतियां आ जाती हैं। आपको कोई अख़बार का संपादक मिले तो पूछियेगा कि कहीं युवतियों से टीआरपी वाला मकसद तो पूरा नहीं होता। जैसे टीवी में सुंदर चेहरे से कारोबार होता है क्या पता अख़बारों को भी युवतियों के गीले बदन से कुछ मिल जाता होगा। वो बताते ही नहीं। सिर्फ टीवी पर कालम लिख देते हैं।
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