tag:blogger.com,1999:blog-68855072187851512032024-02-20T19:52:09.597+05:30JOINT NEWS OF INDIAये सनक ही तो है जो हमे मन्जिल तक ले जाती है.
तो आप भी सनकिये जी भर के.Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-76645253361412559232010-07-26T16:46:00.002+05:302010-07-26T16:46:21.422+05:30वारिश का मीडियानामाउत्तर प्रदेश में वारिश से किसानो के चेहरे खिले- फसल अच्छे होने के आसार|
न्यूज़ रूम में बैठ कर हेडिंग लगा दी, खबर उसने पढ़ी जिससे सम्बंधित थी उसने माथा पीट लिया, दो चार गलियां दी और मीडिया की बेबकूफी पर निराश होकर गाँव में अपने घर की चौपाल से उठकर स्कूल में पढ़ाने चला गया| ऐसा क्या था खबर में जिससे किसान बौखला गया| खबरों के पाठक लगातार घट रहें है हालाँकि आंकड़ो में प्रसार बढ़ रहा है|
आखिर क्याPankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-50175384719994249992010-07-21T10:19:00.000+05:302010-07-21T10:19:21.472+05:30पत्रकारों की हड़ताल--- गर हो जाये तो क्या हो?क्या कभी इलाकाई पत्रकारों ने हड़ताल की है उन्हें काम के बदले मिलने वाले कम पैसे के विरोध में, शायद कभी नहीं| फसबूक, ऑरकुट, भड़ास और अन्य सोसिअल साइट्स और ब्लॉग पर मीडिया मालिकों के खिलाफ लिखने से कुछ नहीं होगा| अब आन्दोलन की जरूरत है| इकट्ठे होकर समूह में हड़ताल कर दो कम से कम पांच दिन के लिए, चाहे टीवी के लिए काम करते हो या फिर अख़बार के लिए| एक साथ काम बंद कर दो| इन मालिको को बता दो कि हम खबरPankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-49172605348209968782008-04-12T09:56:00.000+05:302008-04-12T10:14:59.653+05:30ये है दिमागी बुखारभैया फर्रुखाबाद से चढ़ कर मैं पहुंचा दिल्ली। रेल्वे स्टेशन से बाहर निकलते ही मेरा तार्रुफ हुआ दिल्ली की तथाकथित लाइफ लाइन मेरा मतलब है ब्लू लाइन से। ऊपर वाले का नाम ले कर चढ़ा तो सही पर दिल अन्दर से धौंकनी की तरह धुकधुका रहा था। धीरे धीरे बस में और लोगों का चढ़ना भी शुरु हुआ तो लगा जैसे पूरी दिल्ली इसी बस में घुस जाएगी। अब हालात यह थे कि बस में पैर रखने को भी जगह नहीं थी। अपने सामने ही आकर खड़ी हुई Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-68201448822737251832008-03-20T12:46:00.000+05:302008-03-20T13:27:15.833+05:30प्रोफाइल क्या है.पता नही टी वी वालों को क्या हो गया है। घर मे नही खाने को अम्मा चली भुजाने को। ख़बर बाद मे बताओ पहले प्रोफाइल बताओ। अब सुनिए प्रोफाइल की कहानी। गाँव के एक डॉक्टर की अपहरण कर हत्या कर दी जाती है। बाद मे दो बेटे भी ऐसे ही मारे जाते है। मरने वाले से मारने वाले का प्रोफाइल बड़ा था इसलिए पुलिस ने सौदा कर लिया। बेचारी विधवा पुलिस कप्तान से लेकर डी आई जी तक दौड़ी मगर बेकार। कचेरी मे दरोगा के खिलाफ धरने पर Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-80188291411461785102008-02-21T21:16:00.000+05:302008-02-22T21:49:03.149+05:30ब्रह्मा को चुनौतीमौत पर विजय भले ही आज तक कोइ नही पा पाया हो मगर उम्र की एक सढी जी चुकी केसरी ढेवी ने ब्रह्मा को चुनौती ढे ढी है.केसरी ढेवी सपेरे जाति से है. केसरी साप काटने से मरे इन्सानो को जिन्ढा कर लेती है. ऐसे एक सैकडा से अधिक नढी मे बहाई गयी लाशो को निकाल कर जिन्ढा कर चुकी है. उसके कुनबे मे कितने ही उसे मा कह्ते है और कितने ही ढाढी मगर ये सभी उसका अपना खून नही है. केसरी के मुताबिक ज्यढातर लोग अपने बच्चो को Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-3228978437036038412008-02-14T09:31:00.000+05:302008-02-14T10:22:50.445+05:30कभी विवाह् हुआ करता थाकभी विवाह् हुआ करता था । घर की बेटियां छत की मुडेर से झाँक कर अपने सपनो का शहजादा खोजने लगती थी और दूर से बाबाजी या दादाजी की नज़र जब परकोटो मे पड़ती थी तब रात मे घर के बुजुर्गो को बिस्तर पर घर की इज्ज़त की चिंता सताने लगती थी। सभी रिश्तेदारों की शादियों मे दादाजी ५ दिन पहले यूं ही नही जाते थे। अपनी पोती के लिए कोई ह्ष्ठ पुष्ठ सुंदर काया और किसी खानदानी दामाद की तलाश मे जूते घिस जाते थे। शादी ५ Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-25999988349514610072008-01-30T18:34:00.000+05:302008-01-30T18:39:10.400+05:30युवतियों की खतरनाक टी र पीहिंदी के अख़बारों का स्वर्ण युग चल रहा है। टीवी को गरियाए जाने के इस काल में अख़बारों को खूब वाक ओवर मिल रहे हैं। मान लिया गया है कि टीवी ख़राब है तो अख़बार ही ठीक है। वैसे मेरी दिलचस्पी मुकाबले में नहीं हैं। सवाल उठाने में हैं।हिंदी के तमाम अख़बारों का युवती प्रेम समझ नहीं आता। बारिश की फुहारें पड़ रही हों तो भींगती हुई युवती की तस्वीर छपेगी। या भींगने से बचने की कोशिश करती हुई युवतियों की Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-65386655491931023942008-01-25T20:11:00.000+05:302008-01-25T20:36:45.109+05:30आइये....हिलमिल के मनाएँ गणतंत्रमेरा भारत महान है इसमें क्या कोई शक है....?शायद इस बात पर शक है तभी तो साल में दो बार ये नारा दुहराते हैं..... अपने आप के ज़िंदा होने का अहसास दिलाते हैं।हम देश भक्त हैं तभी तो ए० आर० रहमान के गीत "माँ तुझे सलाम " गुनागुनातें हैं।हम लोग भाई अपने को बड़ा राष्ट्र प्रेमी साबित करने पे तुले हैंये अलग बात है कि हम माँ के दूध से एकाध बार ही धोए गए अथवा धुले हैंसारी सफेदी नेताओं को मिली है।उनकी वाणी में Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-57940119301714515382008-01-02T14:55:00.000+05:302008-01-07T18:03:24.312+05:30न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडियानव वर्ष की सभी को शुभकामनाएं । यह बात हम पिछले २० साल से कह रहे हैं । हर साल कुछ नया करने की तम्मना। साल एक एक दिन कर बीत जाता है और हम अपनी जिन्दगी का एक साल गवां देते है। २००७ को कई बात के लिए याद किया जाएगा। इसमे वो बाते भी होगी जो हमे राष्ट्रीय खबरिया चैनल नही दे। साल के शुरुआत में हम मनोरंजन और खबरों के लिए अलग अलग चैनल देखते थे। अब चंनेलो पर सिर्फ मनोरंजन दिखता है। टी र पी की महामारी फ़ैल Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6885507218785151203.post-60570572317281143292007-11-05T12:53:00.001+05:302007-11-05T14:28:05.944+05:30मेरी दिल्ली यात्रामुझे दिल्ली जाने का मौका कभी कभी मिलता है । वैसे चैनल वाले आजकल स्वर्ग की यात्रा कर कर रहे है और संजीवनी बूटी लाने का मार्ग खोज रहे है । अपना अभी चांस नही लगा है । हम बात दिल्ली यात्रा की कर रहे थे । जब मैं 6 साल का था तब पहली बार गया था । दूर के एक रिश्तेदार संसद भवन मे एकाउंटेंट थे । उनके बेटे की शादी मे जाने का मौका मिला था। लोधी रोड पर सरकारी कॉलोनी मे ५ दिन की मस्ती । सरकारी अम्बसेदर कार पर Pankaj Dixithttp://www.blogger.com/profile/12805760682785546143noreply@blogger.com